Tuesday, September 13, 2011

यादों की कैद में



कितनी जहरीली
कितनी तड़प ,
कितनी पीड़ा
सांसो की अकुलाहट ..
बढती जाती है
उसमें फँसी इस 'मै'
का क्या करूँ ?
शरीर आत्मा को ..
छोड़ती तो शव बन जाती ,
उसकी तो ' गती ' है
कुछ लकड़ियाँ ...
उस पर शव बना शरीर
अग्नि को अर्पण करते लोग
यादों को कहाँ अर्पण करूँ...
तर्पण करूँ ?
कैसे इसका श्राद्ध करूँ ...
कैसे इसका श्राद्ध करूँ
कैसे इसका श्राद्ध करूँ ... Vasu

8 comments:

  1. ताज्जुब है इतना अच्छा ब्लॉग मेरी नज़रों में नहीं आया अब तक...........सबसे पहले तो मेरे ब्लॉग खलील जिब्रान पर आपकी टिप्पणीयों का तहेदिल से शुक्रिया.........आपके ब्लॉग पर आया.........आपका ब्लॉग और कुछ पोस्ट पढ़ी बहुत अच्छी लगी...........तस्वीरों का चयन भी लाजवाब है आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे........

    अगर फुर्सत मिले तो मेरे अन्य ब्लॉग भी देखे और अगर पसंद आये तो फॉलो करके उत्साह बढ़ाये |

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  2. यादों को कहाँ अर्पण करूँ...
    तर्पण करूँ ?
    बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ..........

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  3. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

    संजय कुमार
    आदत….मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  4. पहली बार पढ़ रहा हूँ आपको और भविष्य में भी पढना चाहूँगा सो आपका फालोवर बन रहा हूँ ! शुभकामनायें

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  5. Kitni Zahrili....amazing poetry. Is hindi ki kapvita ke madhyam se apne ham sabko bandh liya hai.
    kapoorrustogi@gmail.com

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