Tuesday, October 30, 2012

'इक गंध घुलती है'

'इक गंध घुलती है'

'तेज धूप वाली
दुपहरी में' जब
कोई पगला बादल
बरस जाता है...

उसके ठीक बाद
जैसी गंध आती है ना?

ठीक वैसी ही...
गंध घुलती है जब
तुम चुपके से
मुझे 'नीहार' जाते हो... !!

12 comments:

  1. सोंधी सी महक वाला प्यार!!!!
    बहुत सुन्दर...

    अनु

    ReplyDelete
  2. क्या सोंधी खुशबू होती है,,,,बढ़िया अभिव्यक्ति,,,,

    RECENT POST LINK...: खता,,,

    ReplyDelete
  3. प्रशंसनीय रचना - बधाई
    आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

    ReplyDelete